आज खबर पढ़ी तो आश्चर्य हुआ कि अमेरिका के राष्ट्रपति को ये सब क्या-२ करना पड़ रहा है.टी-शर्ट से लेकर झोला तक सब बेचना पड़ रहा है उन को और इन सब चीजों पर लिखा है २०१२.अब यह समझ नहीं आता कि मि. प्रेसिडेंट २०१२ के बाद कि तैयारी में लगे हैं या उस से पहले हो रहे चुनावी प्रचार में . सही भी है अगर चुनाव जीत गए तो तरीका सफल माना जायेगा और संसार के अन्य नेता भी अपनाएंगे . नहीं तो ऑन- लाइन शौपिंग करने से मि. प्रेसिडेंट इतना मुनाफा तो कमा ही लेंगे कि चुनाव का खर्च निकल आएगा ही. क्यों कि भाईसाहब कोई भी टी शर्ट ३० डॉलर से कम नहीं है यानि कि लगभग १५०० रुपये की. कुत्ते का पट्टा भी १२ डॉलर का है.अब इसे पढ़ कर आप कहीं न कही मूड बना चुके होंगे कि इस सेल का लाभ हम किस तरह से उठा सकतें हैं?मेरे हिसाब से हम भारतीओं के लिए तो सब से ज्यादा मजे की बात यह है कि हम इस खबर का यह कह कर मखौल उड़ा सकतें है कि भाई अमेरिका का राष्ट्रपति क्यों अपने देश का नाम मिटटी में मिलाने पर आमादा है.भाई हम तो हमारे नेताओं के मामले में इस प्रकार के खुले व्यवसाय(open business) की आशा ही नहीं करते.हाँ वो अलग बात है कि हमारे नेता चुपके-२ ही इतना कमा लेतें हैं कि खोलने कि ज़रूरत ही नहीं पड़ती.हमारे नेताओं के तो कच्चे चिट्ठे ही खुला करतें हैं.
मगर कहीं न कहीं हमारे देश में यह रुढ़िवादी सोच जरूर है कि नेताओं को काम-धंधे वाला नहीं होना चाहिए,अगर हमारे देश में ऐसा कार्य कोई नेता करता तो भाई साहब अगले चुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हो जाती.क्यों कि दूसरी पार्टी वाले इसी मुद्दे को अपना मुद्दा बना लेते.
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