रविवार

पाकिस्तानी-न्याय की चौखट पर ये नया सा क्या है ?

               दरअसल में बात कर रहा हूँ पकिस्तान की हुकूमत की और वहां की न्याय व्यवस्था की.जो देश ,भारत सहित पूरे संसार में आतंकियों को खौफ फ़ैलाने की ट्रेनिंग देता है और इन आतंकियों के रहन-सहन का भी बंदोवस्त खुद ही करता है.यहाँ तक कि उन को अपने बच्चे की तरह संरक्षण देता है .और इन आतंकियों पर वह देश,जिस देश के ये गुनाहगार होते हैं  इनको सजा दिलवाने या इन पर मुक़दमा चलवाने की गुहार पै गुहार लगाते रह जाते हैं,मगर पकिस्तान के कान पर जू तक नहीं रेंगता.
          मगर कल पकिस्तान के न्याय विभाग में गजब हो गया-जी हाँ मित्रों ! कल यहाँ के एक  जज परवेज अली शाह ने रावलपिंडी की अदियाला जेल में बंद कमरे में हुई सुनवाई के बाद मलिक मुमताज हुसैन कादरी को हत्या के मात्र दो आरोपों और आतंकवाद के आरोप में मौत की सजा सुनाई। उसने 4 जनवरी को इस्लामाबाद के एक रेस्तरां के बाहर  पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की गोली मर कर हत्या कर दी थी .
      दरअसल यह क़त्ल तासीर के ही सुरक्षाकर्मी मुमताज हुसैन कादरी ने की थी इस लिए शायद उस को यह सजा मिली.या फिर इसने पकिस्तान के किसी राजनयिक का क़त्ल न किया होता तो शायद उस पर मुक़दमा ही न चलाया गया होता.
      बड़ी अजीब बात है जिस देश  हिंदुस्तान का गुनाहगार माफिया सरगना से डोन बना अबू सलेम बे-खौफ रहता हो उस देश में भी किसी गुनहगार को सजा-ऐ-मौत मुमकिन है?
 मगर आज इतना तो सच है कि पकिस्तान ने जिन भेडियों को  पड़ोसियों के बच्चे खाने के लिए पाला था आज वे भेडिये उसी कि जान के दुश्मन बन गएँ हैं क्यों कि -

                   "  दूसरों के लिए कांटे, उगाते रहोगे जब तलक.
                        हाथ तेरे लहू-लुहा होते रहेंगे तब तलक.
                      जब तलक तू खाइयाँ खोदेगा,औरों के लिए.
                       तू भी उनमें ,खुद ही गिरता रहेगा तब तलक."

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