
हो सकता है कि आप के और मेरे विचारों में भेद हो ,मगर में आप को आमंत्रित करता हूँ कि आप अपने विचार टिपण्णी के रूप में दें .मैं अपने पक्ष में कुछ साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा हूँ -
क्या बच्चों का लालन-पालन किसी बड़ी और जिम्मेदाराना नौकरी से कहीं कम मायने रखता है ?
क्या बच्चों का लालन-पालन किसी बड़ी और जिम्मेदाराना नौकरी से कहीं कम मायने रखता है ?
गृहणियां अपने बच्चों का लालन -पालन अपना पूरा समय दे कर करतीं हैं .क्या इतना वक़्त कोई कामकाजी महिला अपने बच्चों को या अपने पति को दे पति हैं? उन के बच्चे तो सिर्फ आया के साये में ही पल कर बड़े होते हैं.ये बेचारे बच्चे सिर्फ इतवार से इतवार को ही अपने माँ-बाप से मिल पातें हैं.ऐसा लगता है जैसे उन्हें घर में ही बोर्डिंग स्कूल की फीलिंग लेने के मौके दिए जा रहें हैं .
क्या घर को अच्छे से चलाना कोई सरल काम है?
क्या घर को अच्छे से चलाना कोई सरल काम है?
हमारे देश में जहाँ पुरुष प्रधान पारिवारिक व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है, वहां लगभग सभी घरों में एक ही फैशन है की घर की व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी गृहणी पर ही होती है.जब बच्चे हो जातें हैं तो उन्हें संभालने की जिम्मेदारी प्राकृतिक रूप से माता अर्थात गृहणी की ही होती है .पति का कर्तव्य होता है कि वह घर को चलने के लिए धन कि व्यवस्था का कार्यभार उठाये .जिस के कारण उसे अनिश्चित कल के लिए घर से बाहर ही रहना पड़ता है .जिस के कारण वह घर के कार्यों में पत्नी कि मदद करने में असमर्थ रहता है.
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि किसी परिवार का ,उस के बच्चों का भविष्य एक हद तक उस गृहणी के ऊपर निर्भर करता है .और फिर घर का बजट बनाकर ,उस के हिसाब से घर चलाना बच्चों का खेल नहीं .
क्या पति और उस के परिवार के लिए जान तक हाज़िर करना एक गृहणी के सिवाय कोई और महिला जानती है ?
क्या कामकाजी महिलाओं के पारिवारिक संबंध उतने मज़बूत होतें हैं जितने कि एक हॉउस वाइफ के? शायद नहीं ,भले ही महिला पत्रिकाएँ महिलाओं को जॉब करने के लिए हजारों तरह के नुख्से और उसके फायदे बतातीं हैं .चाहें ये लाख कोशिश करें - महिला-शक्ति के बारे में उन्हें आत्म निर्भर बनाने के लिए उकसा कर मगर उनका मकसद सिर्फ अपनी खरीद दारी बढ़ाने के सिवाय कुछ और नहीं.वास्तव में होम मेकर महिलाएं अपने पति को और परिवार को अन्य महिलाओं के मुकाबले ज्यादा और जरूरी समय देतीं हैं.और किसी ने ठीक ही कहा - कि रिश्ते तभी मजबूत बनते हैं जब रिश्तों को समुचित वक़्त दिया जाता है.
मेरा मकसद यहाँ पर यह है कि महिलायों को खुद समझना होगा कि कहीं पुरुष से प्रतियोगिता करने के चक्कर में वह अपने स्त्रीत्व को तो नहीं खो रही हैं.प्रकृति ने पुरुष तथा स्त्री को अपनी -अपनी अलग -२ जिम्मेदारियां दी हैं.अगर इन जिम्मेदारियों को निभाने का कोई विकल्प होता तो पुरुष भी प्राकृतिक रूप से माँ बन पाते.मगर ईश्वर ने यह उपहार सिर्फ स्त्री को दिया.
मैं यह नहीं कहता कि महिलाओं को नौकरी नहीं करनी चाहिए अगर आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए नौकरी कि ज़रूरत है तो .इस लिए नहीं कि नौकरी पेशा औरतों को ज्यादा सम्मान कि द्रष्टि से देखा जाता है एक ग्रहणी के मुकाबले
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जवाब देंहटाएंघर चलाना बड़ा मुश्किल काम है. यह मुझे तब पता चलता है जब कभी पत्नी की तबियत खराब होती है या वह मायके गयी होती है. घर में हर चीज़ अस्तव्यस्त हो जाती है और उसके लौटने पर डांट पड़ती है.
जवाब देंहटाएंबच्चे भी काबू में नहीं रहते. डरते ही नहीं हैं मुझसे. औरतों के काम करने में बुराई नहीं पर घर की देखभाल भी महत्वपूर्ण चीज़ है. उसका पूरा सम्मान करना चाहिए.