रविवार

भारतीय राजनेताओं की जुवान रोज़ फिसलती है ?

   आखिर क्या हो गया है भारत के राज नेताओं  को  ....ये  सब जैसे भूल गएँ हों कि उन्हें अगले चुनाव के लिए रण- नीति भी  बनानी है.सत्ता रुढ गठबंधन ने तो जैसे काम  शुरू  कर दिया है सामान  समेटने का जैसे  कि अगले चुनाव के बाद उन्हें इस देश को ही छोड़ के चले जाना हो .एसी स्थिति तो तब होती है जब किसी गाँव में बाढ़  आ जाती है तो गाँव के लोग अपना बोइया- बिस्तर लाद  के चलने कि तैयारी में सब भूल जातें हैं कि लेना क्या है छोड़ना  क्या  है . अगर एसा नहीं होता तो इतनी महगाई क्यों बढती ,रोज़ डीजल पेट्रोल के दाम क्यों बढ़ते ? अरे अनशन करने वालों पर लाठियां क्यों बर्शायी जाती .एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के चक्कर में भारतीय  राजनीति  को   कीचड का  अड्डा बना दिया है.   कम  से कम  पहले तो एसा नहीं होता था ,बड़ा-बड़ा  करते नहीं थे तो कम से कम बोलते तो अच्छा थे . काम  तो जैसे भी थे बातें या वक्तव्य तो ठीक -ठाक देने का प्रयास किया करते थे . हम सोचा करते थे कि कभी तो इन राज नेताओं कि कथनी करनी में अंतर ख़त्म होगा, मगर किसी को इस बात का आभास तक ना होगा कि ये लोग करनी में कोई बदलाब ना करके कथनी को ही करनी जैसा बना देंगे. कांग्रेस पार्टी  के राज नेताओं ने तो जैसे  भाषण  देने के नियमों का  ही पालन   करना  छोड़ दिया है .वे अपनी किसी भी जिम्मेदारी से मुह मोड़ने को पूर्ण रूप से तैयार हैं .फिर चाहें राहुल गाँधी को ही ले लो या फिर दिग्विजय  सिंह को .राहुल ने आतंक वाद को एक प्राकृतिक आपदा ही घोषित कर दिया जिस से कभी निजात ही नहीं पाई जा सकती है. अरे भाई  गुड मत दो कम से कम गुड की सी बात तो करो.ये कौन नहीं जानता कि आतंकबाद को ख़त्म करना इतना आसन नहीं है वो भी भारत जैसे देश में जहाँ   देश के राज नेताओं कि स्थिति चिंता पूर्ण ही रहती है.अर्थात   उन्हें अगली  पञ्च वर्षीय योजना में अपनी कुर्सी  की चिंता हर  वक्त  खाए जाती है .अब इस चिंता के  दुखद समय में देश  की चिंता कौन करेगा भला .क्या ये बात हम सब भारतीय नहीं जानतें हैं .हम सब जानतें हैं महोदय -
        हम यहाँ के राज नेताओं को भी जानतें हैं इसी लिए तो अपने भविष्य के बारे में खुद सोचते हैं .
हम भारतीय पुलिस के बारे में भी जानते हैं इसीलिए तो घरों में ताला लगा कर रखतें हैं .हम हम सरकारी बैंकों को भी जानते हैं तभी तो निजी   बैंकों  की बल्ले- बल्ले हो रही है .हम सरकारी अध्यापकों की स्थिति को भी अच्छी तरह समझतें हैं तभी   तो प्राइवेट विद्यालयों  में  देश  के  बच्चे  पढ़ रहें हैं  .और  हम दोनों तरफ से पिस रहें हैं ,एक तरफ से टैक्स  के माध्यम से सरकारी विद्यालयों को भी हम ही चलातें हैं ,और दूसरी ओर  उनसे हमें कोई फायदा भी नहीं मिलता .हम यह भी जानतें हैं कि अंग्रेज    जाने के बाद भी हम सब पूर्ण रूप  से आजाद नहीं हुए हैं क्यों कि  अंग्रेजों की कई  नाजायज़ औलादें अभी भी अपने आप को हमारा ( भारतीयों का  ) खून पीने का हकदार   मानते हैं. 
          और हम  यह भी जानते हैं कि ये  नेता लोग  देश को  चलाने के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं . हम जानतें हैं कि आज ये नेता लोग किस तरह से राजनीति का गन्दा खेल खेल रहे हैं .मगर  ये अपने आप को स्मार्ट समझ  रहे हैं . समझ रहे हैं कि ये जनता तो बेवकूफ है मगर मत   भूलो कि आज भारत कि साक्षरता ७४.०४  हो गयी है .हर दसवां व्यक्ति लैपटॉप या कंप्यूटर ले के बैठा है .आज  हर भारतीय यह जानता है  की वास्तव में क्या हो रहा है .हम यह भी जानते हैं कि बस कुछ दिन ही बाकी हैं इन अंग्रेजों की औलादों के . क्यों की अब भारतीय  अद्यतन जानकारियों से दूर नहीं  है. 

         अब समय आ गया है कि हमरे राज नेता  भारतीय जानता को भली बनती समझने का प्रयास करें.और अपनी आलतू- फालतू बयां बजी से बाज़ आयें .क्यों की अभी तक तो उनकी विरोधी पार्टियाँ ही उन्हें दिशा दिखाती थी .मगर  आज  हर   भारतीय मीडिया कर्मी है .किस -किस को बेवकूफ बनाओगे ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपा कर के अपनी टिपण्णी जरुर लिखें .इस से मेरा हौंसला बढेगा.आप पूरी स्वतंत्रता के साथ अपने विचार छोड़ सकते हैं ,आप विचार हमारे लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं -और हाँ अपना नाम लिखना मत भूलियेगा - धन्यवाद /