बुधवार

एकादशी व्रत का महात्म्य

          एकादशी का  कितना महत्त्व है इस तथ्य का पता हमें इस बात से लगता है कि भक्ति के ६४ अंगों में एकादशी का भी स्थान है. अर्थात भक्ति की प्राप्ति के लिए एकादशी व्रत पालन करना अत्यंत आवश्यक है. कुछ तथाकथित गुरु एकादशी के अतिरिक्त अन्य व्रतों का पालन करवाने में अधिक रूचि लेतें हैं.वे कहते हैं कि एकादशी व्रत मात्र वैष्णवों के लिए है.जब कि शास्त्रों में तो यह व्रत मानव मात्र के लिए ही बताया गया है.अर्थात ब्राह्मन ,क्षत्रिय ,वैश्य ,सूद्र ,नारी -पुरुष  सभी को एकादशी व्रत का पालन करना  चाहिए  . जो लोग इस तिथि को अन्न ग्रहण करते हैं उनके विषय में निम्न प्रकार से कहा गया है -

     ब्रह्म हत्या पापानां , कथंचिन्निश्क्रित्भावत .
      एकादश्यान्तुयोभुंकते निश्क्रितिर्नास्ती कुत्रचित.
                                                           ( वृहद् नारदीय पुराण )

अर्थात ब्रह्म हत्या के पाप से किंचित मुक्ति संभव है किन्तु एकादशी के दिन अन्नाहार के पाप से किसी भी  प्रकार से मुक्ति संभव नहीं है. इसी कथन को आगे बढ़ाते हुए पदम् पुराण में कहा गया है कि- 
   भूयो-भूयो दृढ़ा वाणी श्रुयनतम-श्रुयनतम जनः .
    ना भोक्तव्यं ना भोक्तव्यं  ना भोक्तव्यं  हरेर्दिन: . 
                                             (  पदम् पुराण ,क्रिया योग २२/५३)
    अर्थात सुनो- सुनो हे मनुष्यों मैं जोर-२ से दृढ़ता  पूर्वक कहता हूँ -कि एकादशी के दिन अन्नाहार मत करो ,मत करो ,मत करो.

                       नारदीय पुराण में प्रसंग आता है कि देवपुर के राजा रुक्मानंद जो कि महा भागवत भी थे ,ने अपने राज्य में उद्घोषाना कि कि उन के राज्य में जो भी ८ से ८० वर्ष के लोग हैं चाहें वे किसी भी जाति के हों या लिंग के हों सभी को एकादशी का व्रत करना ही होगा . अन्यथा उसका अहित होगा .
 इसी प्रकार के अनेकानेक श्लोकों के द्वारा एकादशी के व्रत की पुष्टि होती है और संस्तुति हुई है कि प्रत्येक मानव को एकादशी का व्रत करना चाहिए .किन्तु इन सब साक्ष्यों के बाबजूद भी कुछ तथाकथित पंडित इस प्रकार की टिप्पणी  करतें हैं कि -
पतौ जीवति या नारी उपवास वृत्न्चारेता .
 आयु: सा हरते भंतुर्नारा  कंचैव गच्छति . 
अर्थात जो स्त्री अपने पति के जीवित होने पर व्रत करती है तो उस से उसव के पति कि आयु कम होती है,तथा नरक कि अधिकारी होती है.

                  यदि यह कदापि सत्य भी हो तो इसे एकादशी के संबंध में नहीं मानना चाहिए अपितु अन्य अवैश्नव व्रतों के संबंध में मानना चाहिए.क्योंकि एकादशी व्रत कि संस्तुति तो स्वयं भगवन कृष्ण ने कि है . एकादशी के अन्य नाम भी हैं जैसे- हरिवासर तिथि,माधव तिथि आदि .



नोट- एकादशी के सम्बन्ध में और अधिक जान कारी के लिए आप किसी भी गौडीय मठ या इस्कोन मंदिर के भक्तों से संपर्क कर सकतें हैं. इस के अतिरिक्त एकादशी के वैज्ञानिक महत्त्व पर भी हम एक ब्लॉग प्रकाशित करेंगे.
                                                                                                     -   हरे कृष्ण
  

2 टिप्‍पणियां:

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