क्या एकादशी वैष्णवों का व्रत है?
जनसाधारण को लगता है एकादशी मात्र वैष्णवों का व्रत है, परंतु धर्मग्रंथों में इसे नित्य व्रत बताते हुए समस्त सनातन धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य घोषित किया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि एकादशी व्रत केवल पुरुषों तथा विधवाओं को करना चाहिए, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। सुहागिन स्त्रियां और अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत रख सकती हैं। आजीवन इसका पालन किया जाता है। वृद्ध या रोगी होने की अवस्था में इस व्रत को उनके नाम से संकल्प करवा कर किसी ब्राह्मण अथवा परिवार के किसी सदस्य से करवाया जा सकता है। एकादशी व्रत वैष्णवों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। सनातन धर्म के समस्त ग्रंथ एकादशी व्रत की प्रशंसा करते हुए इसे व्रतराज घोषित करते हैं। चाहे गृहस्थ हों या वैरागी, सभी के लिए यह व्रत कल्पवृक्ष के समान मनोकामना पूरक है। खगोलीय दृष्टि से एकादशी के दिन सूर्य और चंद्र की स्थिति भी इसे अति विशिष्ट बनाती है।
एकादशी की उत्पत्ति -
शास्त्रों का निर्देश है कि एकादशी के व्रत का शुभारंभ मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी से किया जाना चाहिए। क्योंकि पुराणों के मतानुसार एकादशी की उत्पत्ति इसी तिथि को हुई थी। संभवत: इसी कारण इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। एकादशी की उत्पत्ति के विषय में कथा भगवान श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर के संवाद के रूप में प्राप्त होती है। उसका सार संक्षेप यह है कि सतयुग में तालजंघ नामक दैत्य का पुत्र मुर अति बलशाली दानव था। उस असुर ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें युद्ध में हरा दिया। देवगणों को परास्त करने के बाद मुर विजय के उन्माद में उन्मत्त होकर भगवान विष्णु की तलाश में निकल पडा। श्रीहरि उस समय हिमालय के बदरीवन स्थित सिंहावती नामक गुफा में योगनिद्रा में लीन थे। ऐसे में श्रीहरि को आघात पहुंचाने के लिए मुर जैसे ही आगे बढा, तत्काल भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न तेज एक दिव्य कन्या के रूप में परिणत हो गया। उस दिव्य शक्तिस्वरूपा कन्या ने दैत्य का वध कर दिया। यह देखकर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हुए और बोले, मैं तुमसे अत्यन्त प्रसन्न हूं, तुम मनोवांछित वरदान मांगो। कन्या रूपी महाशक्ति ने तब यह निवेदन किया, यदि आप मुझसे संतुष्ट हैं और मुझे वरदान देना चाहते हैं तो यह वर दें कि मैं व्रत-उपवास करने वाले आपके भक्तों का उद्धार कर सकूं।
ऐसे मधुर वचन सुनकर श्रीहरि बोले- हे देवी! तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। तुम मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मेरे तेज से उत्पन्न हुई हो। अत: तुम उत्पन्ना एकादशी के नाम से लोकविख्यात होगी और आज से एकादशी मेरी परमप्रिय तिथि होगी। समस्त प्रकार के व्रत, तप, यज्ञ, अनुष्ठान से भी अधिक पुण्यफल एकादशी व्रत से प्राप्त होगा।
एकादशी की उत्पत्ति -
सनातन धर्म में वर्ष के बारह महीनों के प्रत्येक मास में दो पक्ष होते हैं-कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में 15 तिथियां होती हैं। अत: हर मास में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि गृहस्थों को शुक्ल पक्ष तथा साधु-संतों (वैरागियों) को कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत करना चाहिए। परंतु धर्मग्रंथों के अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है कि सबको दोनों पक्षों की एकादशी तिथियों में व्रत रखना चाहिए।
निर्जला एकादशी
ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन बिना जल ग्रहण किए (निर्जला) उपवास करने से साल भर की एकादशीव्रतों का कुल पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इसका कारण यह है किद्रौपदी के साथ पांचों पांडव हर महीने एकादशी का व्रत रखते थे, परंतु भीमसेन को भूख बहुत लगती थी और उनको एकादशी के दिन उपवास रखने में कष्ट होता था। इस संदर्भ में भीमसेन ने महर्षि वेदव्यास से उपाय पूछा तो व्यासजी ने उन्हें बताया कि ज्येष्ठ शुक्ल-एकादशी को निर्जल व्रत करने से सभी एकादशी व्रतों का फल मिल जाएगा। भीमसेन द्वारा निर्जल व्रत किए जाने कारण यह तिथि भीमसेनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
व्रत का विधान -
धर्मग्रंथों के अनुसार एकादशी व्रतकर्ता को दिन में उपवास रखते हुए तथा रात भर जागरण करके हरिनाम का संकीर्तन करना चाहिए। जिनके लिए उपवास रखना संभव न हो, वे दिन में एक बार फलाहार ग्रहण कर सकते हैं किंतु एकादशी के दिन भूलकर भी अन्न का सेवन न करें। जो लोग विधि-विधान से एकादशी व्रत का नियमपूर्वक पालन करते हैं, वे भगवान के कृपापात्र बनकर भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करते हैं। इसीलिए एकादशी व्रत को आत्मशुद्धि का मुख्य साधन माना गया है।
क्या एकादशी वैष्णवों का व्रत है? -
जनसाधारण को लगता है एकादशी मात्र वैष्णवों का व्रत है, परंतु धर्मग्रंथों में इसे नित्य व्रत बताते हुए समस्त सनातन धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य घोषित किया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि एकादशी व्रत केवल पुरुषों तथा विधवाओं को करना चाहिए, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। सुहागिन स्त्रियां और अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत रख सकती हैं। आजीवन इसका पालन किया जाता है। वृद्ध या रोगी होने की अवस्था में इस व्रत को उनके नाम से संकल्प करवा कर किसी ब्राह्मण अथवा परिवार के किसी सदस्य से करवाया जा सकता है। एकादशी व्रत वैष्णवों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
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