"डर्टी पिक्चर्स" फिल्म आई और खूब कमाई भी कर रही हैं,कुछ लोग फिल्म को अच्छी बता रहें हैं तो कुछ बुरी.कुछ लोग विद्या बालन की प्रशंसा कर रहें हैं तो कुछ आलोचना.कुछ लोग विद्या बालन के, और कथा के कारण फिल्म को देखने जाने के लिए उत्सुक हो रहें हैं तो कुछ फिल्म के दृश्यों के बारे में सुन कर देखने के लिए उत्सुक हैं.
जिस दिन फिल्म रिलीज हुई ,श्रीमतीजी ने फ़ोर्स किया कि "डर्टी पिक्चर्स" फिल्म देखने जाना है.लाख समझाने के उपरांत भी श्रीमतीजी नहीं मानी.झक मार कर जाना ही पड़ा सिनेमा हॉल में.दरअसल मुझे विद्या बालन के उत्तेजक दृश्यों के सम्बन्ध में पहले ही अपने ऑफिस की सामूहिक चर्चाओं में ही मालूम पड़ गया था.सोचा परिवार के साथ कैसे जा ऊँ.मगर पत्नी के आगे एक न चली ,जाना है तो जाना है.सिनेमा गया तो देखा कि भीड़ तो बहुत है, लोग अपनी पत्नी के साथ फिल्म देखने आये हुए थे .बच्चे शायद नहीं थे ,अगर थे भी तो सिर्फ नासमझ बच्चे जिनकी उम्र पांच साल से निचे कि थी .मैंने टिकट ले कर सिनेमा में प्रवेश किया.फिल्म शुरू हुई ,दृश्य वाकई मजेदार थे .तब मुझे ध्यान आया कि अपने ऑफिस वाले पाण्डे जी उसकी चर्चा सुबह सुबह इतनी गरम-मिजाजी के साथ कर रहे थे .मगर मुझे देख कर चुप से हो गए .दरअसल हमारी उम्र में काफी फर्क है और वे उस फर्क का लिहाज करतें हैं .यद्यपि वे मेरे सहकर्मी हैं .मगर फिर भी लिहाज... ,अब करतें हैं तो करतें हैं .भाई सभी लोग एक जैसे तो नहीं होते.
दर असल "डर्टी पिक्चर्स" फिल्म ८० के दशक की "सिल्क स्मिता" नाम की दक्षिण भारतीय आइटम गर्ल के जीवन वृत्त पर आधारित है.जो एक निम्न माध्यम वर्गीय घर से भाग कर मद्रास जा कर फिल्मों में रोल पाने के मकसद से सघर्ष शुरू करती है मगर उस की सराफत के बल पर उसे कोई टुच्चा सा भी रोल नहीं मिलता .तब उसे मज़बूरी बस उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है और वह अपनी खूबसूरत देह के बल पर सिनेमा में जगह बनाने का प्रयास करती है और वह उसमे सफल भी होती है.वह इतनी शोहरत पाती है कि लोग उस से जलने लगतें हैं.विशेष रूप से पत्र-पत्रिकाओं के आलोचक ,पत्रकार जो उसके देह-दिखाबे की निंदा करतें रहतें है.
यहाँ दिखाया गया है कि- फिल्मों में,सिल्क यद्यपि एक आइटम गर्ल की भूमिका जरूर करती है,और तो और वो फिल्मों में जमे रहने के लिए वह तत्कालीन अभिनेताओं के साथ भी वह अवैध संबंधों में लिप्त पाई जाती है .मगर इस सबके बाद भी वह बेशर्म नहीं है ,वह एक सामान्य औरत की तरह ही व्यवहार करती है मतलब की वह बेशर्म नहीं है .इस बात की पुष्टि तब होती है जब उसे एक वयस्क फिल्म निर्देशक की तरफ से ऑफ़र मिलता है ,इस ऑफ़र के समय वह आर्थिक रूप से बेहद तंग होते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करती .लेकिन उस निर्देशक द्वारा धोखे से सिल्क का 'नग्न वीडियो' बनाने के प्रयास से ही उस के आत्म सम्मान को इतनी ठेस पहुंचती है की वह आत्महत्या क़र लेती है.और आत्महत्या के समय उस ने जो सृंगार किया उस से यह साफ़ जाहिर होता है कि वह ऐसी दुनिया और दुनिया वालों का कड़ा विद्रोह करती है जो एक औरत को सिर्फ अय्यासी की वस्तु-मात्र ही मानते हैं .जो नारी की गरिमा को न तो मानतें हैं,न ही उसे सम्मान से जीने का अधिकारी समझतें है .और उसने दुनिया वालों के मुह पर तमाचा मारा उर कहा -लो दुनिया वालों ,लो अचार डाल लो इस खूब सूरत देह का ,मैं तो वो हूँ ही नहीं जिसे देख कर तुम उत्तेजित होते हो ,मैं तो वो हूँ जिसे छूना संभव ही नहीं .
फिल्म कार तो यह मानतें ही नहीं कि भड़काऊ और नग्न दृश्यों के बिना फ़िल्में चल भी सकतीं है .और कोई निर्देशक यह सोचता है तो उसे मूर्ख समझा जाता है .जल्दी ही उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है .
कुछ इसी तरह की भावनाओं के प्रदर्शन के उद्देश्य से एकता कपूर ने डर्टी पिक्चर्स प्रस्तुत की है .मगर लोगों को यह उद्देश्य कितना साफ़ नज़र आता है यह तो उनकी अपनी नज़र और नजरिये पर निर्भर करता है.
मगर क्या करें भैया नज़र भी तो अपनी है -फिसल ही जाती है .
जिस दिन फिल्म रिलीज हुई ,श्रीमतीजी ने फ़ोर्स किया कि "डर्टी पिक्चर्स" फिल्म देखने जाना है.लाख समझाने के उपरांत भी श्रीमतीजी नहीं मानी.झक मार कर जाना ही पड़ा सिनेमा हॉल में.दरअसल मुझे विद्या बालन के उत्तेजक दृश्यों के सम्बन्ध में पहले ही अपने ऑफिस की सामूहिक चर्चाओं में ही मालूम पड़ गया था.सोचा परिवार के साथ कैसे जा ऊँ.मगर पत्नी के आगे एक न चली ,जाना है तो जाना है.सिनेमा गया तो देखा कि भीड़ तो बहुत है, लोग अपनी पत्नी के साथ फिल्म देखने आये हुए थे .बच्चे शायद नहीं थे ,अगर थे भी तो सिर्फ नासमझ बच्चे जिनकी उम्र पांच साल से निचे कि थी .मैंने टिकट ले कर सिनेमा में प्रवेश किया.फिल्म शुरू हुई ,दृश्य वाकई मजेदार थे .तब मुझे ध्यान आया कि अपने ऑफिस वाले पाण्डे जी उसकी चर्चा सुबह सुबह इतनी गरम-मिजाजी के साथ कर रहे थे .मगर मुझे देख कर चुप से हो गए .दरअसल हमारी उम्र में काफी फर्क है और वे उस फर्क का लिहाज करतें हैं .यद्यपि वे मेरे सहकर्मी हैं .मगर फिर भी लिहाज... ,अब करतें हैं तो करतें हैं .भाई सभी लोग एक जैसे तो नहीं होते.
दर असल "डर्टी पिक्चर्स" फिल्म ८० के दशक की "सिल्क स्मिता" नाम की दक्षिण भारतीय आइटम गर्ल के जीवन वृत्त पर आधारित है.जो एक निम्न माध्यम वर्गीय घर से भाग कर मद्रास जा कर फिल्मों में रोल पाने के मकसद से सघर्ष शुरू करती है मगर उस की सराफत के बल पर उसे कोई टुच्चा सा भी रोल नहीं मिलता .तब उसे मज़बूरी बस उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है और वह अपनी खूबसूरत देह के बल पर सिनेमा में जगह बनाने का प्रयास करती है और वह उसमे सफल भी होती है.वह इतनी शोहरत पाती है कि लोग उस से जलने लगतें हैं.विशेष रूप से पत्र-पत्रिकाओं के आलोचक ,पत्रकार जो उसके देह-दिखाबे की निंदा करतें रहतें है.
![]() |
Silk Smita (File Photo) |
फिल्म कार तो यह मानतें ही नहीं कि भड़काऊ और नग्न दृश्यों के बिना फ़िल्में चल भी सकतीं है .और कोई निर्देशक यह सोचता है तो उसे मूर्ख समझा जाता है .जल्दी ही उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है .
कुछ इसी तरह की भावनाओं के प्रदर्शन के उद्देश्य से एकता कपूर ने डर्टी पिक्चर्स प्रस्तुत की है .मगर लोगों को यह उद्देश्य कितना साफ़ नज़र आता है यह तो उनकी अपनी नज़र और नजरिये पर निर्भर करता है.
मगर क्या करें भैया नज़र भी तो अपनी है -फिसल ही जाती है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपा कर के अपनी टिपण्णी जरुर लिखें .इस से मेरा हौंसला बढेगा.आप पूरी स्वतंत्रता के साथ अपने विचार छोड़ सकते हैं ,आप विचार हमारे लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं -और हाँ अपना नाम लिखना मत भूलियेगा - धन्यवाद /